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कलमुंही तू मर क्यों न गई

यात्रा
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चुनावी माहौल मे मुलायम सिंह जी ने महिलाओं को लेकर मुंह क्या खोला कि बोतल मे बंद जिन्न फिर बाहर आ गया । बलात्कार को लेकर उनकी टिप्पणी कि बच्चों से गलती हो ही जाती है ने फिर माहैल को गरमा दिया है । आम महिला से लेकर महिला संगठनों ने फिर कमर कस दी है । मुलायम सिंह बैकफुट पर नजर आ रहे हैं । लेकिन गैर से देखें तो बलात्कार जैसी समस्या का एक सामाजिक पहलू भी है जिस पर गंभीरता से कभी सोचा ही नही गया । क्या कभी इस नजरिये से भी इस समस्या को देखा जायेगा ।

चंद महानगरों में बेशक थोड़ा स्थिति बदली हो लेकिन हमारे छोटे शहरों , गांव-कस्बों में आज भी जब कोई लड़की लुटी पिटी किसी तरह साहस बटोर कर अपने घर की चौखट पर कदम रखती है तो उसे अक्सर सुनाई देते हैं वे शब्द जो उसे अंदर तक हिला देते हैं “ कलमुही तू मर क्यों न गई “ बेशक यह शब्द किसी मां की बेबसी , खीज और सामाजिक भय के गर्भ से निकलता हो लेकिन दरअसल लड़की को अंदर तक भेंद जाते हैं । यह तब होता है जब कि उस स्थिति के लिए वह स्वयं जिम्मेदार नही होती ।बल्कि वह समाज होता है जो नारी को देवी मान कर पूजने की बात कहता है ।

दूसरी तरफ समाज भी चंद दिनों की झूटी सहानुभूति व्यक्त करने के बाद ऐसा व्यवहार करने लगता है मानो अपराधी बलात्कारी नही वह स्वयं हो । और जब वह कानून की तरफ निहारती है तो वहां भी उसे कानून के हाथों से ज्यादा अपराधी के हाथ लंबे दिखाई देते हैं । यह स्थितियां उसे अवसाद के ऐसे गहरे अंधेरे में ढकेल देती हैं जहां किन्ही कमजोर क्षणों में उसके अंदर आत्महत्या का विचार पनपने लगता है और अक्सर वह कर बैठती है ।

इस सवाल को लेकर जब हम अपने सामाजिक परिवेश व सं.स्कारों की पड़ताल करते हैं तो पता चलता है कि छुटपन से ही एक लड़की को यह अच्छी तरह से समझा दिया जाता है कि उसका कुंवारापन ही उसकी सबसे बड़ी पूंजी है ।विवाह उपरान्त पति ही उसका एकमात्र स्वामी है । इन संस्कारों का ही परिणाम है कि जब इस तरह की कोई घटना किसी युवती के साथ होती है तो वह मान बैठती है कि उसका सबकुछ लुट गया और इसके बाद कुछ नही बचा । अपने अस्तित्व को ही लुटा मान लेने वाली सोच ही उसे आत्महत्या करने को विवश करती है । दरअसल इस सोच को भी बदला जाना जरूरी है ।इसके लिऐ समाज का सहयोग जरूरी है ।

यहां गौरतलब है कि अगर परिवार से उसे भावनात्मक व मानसिक संबल मिला होता तथा समाज की नजरें उसे ही कटघरे मे न खड़ा कर रही होती तो क्या वह ऐसा करती , शायद नहीं । यही कारण है कि शायद ही कभी किसी बलात्कारी ने आत्मग्लानी में आत्महत्या की हो । हमेशा पीड़ित लड़की ही इसका शिकार बनती है । जब तक यह सोच नही बदलेगी हमेशा लड़की ही आत्महत्या जैसे विचार का शिकार बनती रहेगी ।इस लिए जरूरी है कि सख्त कानूनों के साथ साथ सामाजिक सोच भी बदले ।

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