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सुविधा और वोट की राजनीति का रंग देखिए जहां तिरंगे के तीन रंगों का कोई मतलब नही | नेताओं के ढंग देखिए जिनमे देश के सम्मान का कोई मोल नही | कश्मीर की खूबसूरत वादियों की ‘ खूबसूरती ‘ देखिए जहां आतंकवाद और अलगाववाद से लड्ते ह्जारों जवानों की कुर्बानियों का कोई मोल नही | जहां पूरा देश कसाव और अफ़जल गुरू की फ़ांसी को न्यायसंगत व उचित मानता है, वहीं कश्मीर मे उमर अब्दुल्ला की नेशनल कान्फ़्रेंस और मुख्य विपक्षी पार्टी पी डी पी अफ़जल गुरू की फ़ांसी पर सवाल उठा रहे हैं | अफ़जल के बहाने चुनाव बहिष्कार के लिए उकसाने की कोशिशे भी जारी हैं |
दूसरी तरफ़, बांग्लादेश से आए लाखों घुसपैठियों के सवाल पर जहां पूरा देश एक्मत है वहीं पश्चिम बंगाल की सरकारें ( माकपा व तृणमूल दोनो ) व असम की कांग्रेसी सरकारें कभी मौन धारण करती रही हैं और कभी उनकी पैरवी करती दिखाई देती हैं सिर्फ़ वोट के लिए | सभी जानते हैं कि बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ इस समस्या की जड है | जो लाखों की संख्या मे असम , पश्चिम बंगाल और दूसरे राज्यों मे गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं| यह अलग बात है कि धर्म से वह मुस्लिम हैं | परन्तु यहां बात धर्म की नही, घुसपैठियों की है | यह इतनी बडी संख्या मे आ चुके हैं कि की कई राज्यों का सामाजिक ताना बाना ही बिगड्ने लगा है | ऐसे मे अगर मोदी या कोई दूसरा इन्हे देश से बाहर करने की बात कहता है तो क्या यह गलत है ? सच तो यह है कि पश्चिम बंगाल और असम मे यह इतनी बडी संख्या मे हैं कि चुनावी परिणाम को प्रभावित करते हैं और यही कारण है कि राज्य सरकारों ने इस मामले मे हमेशा एक लचर रूख अपनाया | यही नही इनके वोट पाने के लिए इनके वोटर कार्ड तक बनवा दिये गये | ममता बनर्जी के मुस्लिम प्रेम के पीछे भी इनके वोट का ही कारण है , जो अब किसी से छिपा नही है | असम के मूल निवासी अब इन्हे अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानने लगे हैं , जब तब होने वाली यह हिंसा इसी भय और शंका की देन है | केन्द्र और राज्य सरकारों ने इस समस्या के संदर्भ मे हमेशा शुतुरमुर्गी रूख अपनाया | अब यदि कोई इस पर साफ़ रूख प्रकट कर रहा है, जो देश हित मे है, तो उसे साम्प्रदायिक कहा जा रहा है |
अब यह सवाल उठना भी स्वाभाविक ही है कि क्या कभी यह अनचाहे मेहमान यहां से विदा होगें भी कि नही | अलबत्ता उनके मुस्लिम होने के कारण राजनीति की रोटियां जरूर सेकी जा रही हैं |
दक्षिण भारत मे तमिलनाडू की राजनीति देखिए | अपने ही प्रधानमंत्री की निर्मम हत्या के अपराधियों के प्रति उपजा आक्रोश यहां पहुंचते-पहुंचते ठंडी बर्फ़ मे तब्दील हो जाता है और उन्हें रिहा कर देने की बात कहने पर जय्ललिता को तनिक भी संकोच नही और करूणानिधी की डी एम् के भी सुर मिलाती ही दिखाई देती है | तमिल सवाल पर तिरंगे को लपेट कोने मे डाल देने मे किसी को कोई परहेज नही |
तुर्रा यह कि तब भी हम यह नारा देते नही अघाते कि देश के सवाल पर “ हम एक हैं “ | यह कैसा एकापन है,? समझ से परे है ।
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