वह दौर खत्म हुआ जब कांग्रेसी नेता फाख्ता उडाया करते थे । अब मोदी सरकार की एक नई कार्य शैली ने कांग्रेस को हाशिए पर डाल दिया है । लोकसभा चुनाव में जिस तरह कांग्रेस समेत अन्य राजनैतिक दलों को जनता ने नकारा और मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा को समर्थन दिया, उससे बहुत कुछ साफ हो गया था । राहुल, प्रियंका की नौटंकी भी लोगों को आकर्षित न कर सकी थी । मनमोहन और सोनिया जी के मीठेपन के अंदर छिपे राजनीतिक दिवालियेपन व प्रपंच को लोग समझ चुके थे । इधर महाराष्ट्र व हरियाणा के चुनावों में जनता ने मोदी सरकार की कार्य संस्कृति पर फिर एक बार अपनी मोहर लगा दी है । अब कांग्रेस को महसूस होने लगा है कि उसके पैरों के नीचे जो जमीन अभी तक उसका साथ दे रही थी, वह खिसकने लगी है ।
दर-असल देश में कांग्रेस का शासनकाल कुछ अल्पकालिक कालखंडों को छोड, नकारेपन का इतिहास रहा है लेकिन एक मुख्य राजनीतिक दल होने का लाभ उसे हमेशा मिलता रहा । दूसरे राजनीतिक दलों का प्रभाव, क्षेत्र विशेष तक सीमित रहा । यह भारतीय राजनीति की त्रासदी रही कि आजादी के बाद जो राजनीतिक दल जनाधार समेटे अस्तित्व में आए उनका जन्म या तो जातीयता के गर्भ से हुआ या फिर क्षेत्रीय अस्मिता के संकीर्ण नारों से । इस प्रकार की सोच के फलस्वरूप जन्मे और विकसित दलों का सीमित प्रभाव होना स्वाभाविक ही था । यही कारण है कि चाहे कम्युनिस्ट पार्टियां रहीं हों या फिर समाजवादी, बहुजन अथवा डी.एम.के, अन्ना डी.एम.के, शिवसेना सभी सीमित क्षेत्र तक ही सीमित होकर रह गईं । इसका सीधा लाभ हमेशा कांग्रेस को मिलता रहा ।
थोडा पीछे देखें तो कांग्रेस पार्टी का देश की आजादी से जो रिश्ता रहा है, स्वतंत्रता के बाद उसका भरपूर राजनीतिक लाभ इसे लंबे समय तक मिलता रहा । गांधी और नेहरू को जिस तरह से देश के स्वाधीनता आंदोलन से जोड कर महिमा मंडित किया गया, उसे समझने मे आमजन को कई दशक लग गये । दर-असल विभाजन के बाद पहले आम चुनाव में कांग्रेस का सत्ता में आना एक राजनीतिक वरदान साबित हुआ । सत्ता की बागडोर मिलते ही कांग्रेस ने जैसा चाह वैसा इतिहास पाठय पुस्तकों में सम्मलित कर एक पूरी पीढी का “ब्रेन वाश ” किया । पांचवे दशक मे पैदा हुई पीढी ने वही पढा और समझा जो उसे स्कूलों की पाठय पुस्तकों में पढाया गया था । यह कांग्रेस का सौभाग्य रहा कि वह आजादी के बाद लंबे समय तक सत्ता में काबिज रही और उस इतिहास को पढ कर कई पीढीयां जवान हुईं ।
अगर थोडा गौर करें तो स्वाधीनता आंदोलन में क्रांतिकारियों की भूमिका को कम करके आंकते हुए इतिहास लिखा गया । एक तरह से बडी चालाकी से इनके योगदान को हाशिए पर रखने में कांग्रेस सफल रही । यही नहीं, जहां एक तरफ नेहरू और गांधी को इतिहास में महिमा मंडित किया गया वहीं दूसरी तरफ लोह पुरूष कहे जाने वाले पटेल की भूमिका और उनके योगदान को भी बडी खूबसूरती से इतिहास के एक छोटे से कोने में समेट कर रख दिया गया । अब जब सूचनाओं और संचार साधनों का विकसित तंत्र सामने आया तो लोग समझ सके कि पटेल क्या थे और देश के नव निर्माण में उनका क्या योगदान रहा ।
यही नहीं, नेहरू शासनकाल की कमजोरियों और विफलताओं के बारे में भी अब थोडा बहुत जानकारियां मिलने लगीं हैं । अन्य़था कांग्रेसी इतिहास की चमकीली परतों के अंदर खामियों के सारे अंधेरे दफन पडे रहे । धुंध छंटने के बाद अब आमजन का कांग्रेस की लचर, ढुलमुल व तुष्टीकरण की नीतियों से मोहभंग हो रहा है । उसे यह समझने में अब कोई दुविधा नहीं कि मोदी जी के नेतृर्त्व में देश की दशा व दिशा को नई गति और आयाम मिलेंगे ।
कांग्रेस कुछ अपवादों को छोड कर, अधिकांश मामलों में यथास्थितिवाद की पोषक रही है । आज उसी यथास्थितिवाद से ऊबे आमजन को मोदी सरकार ने विकास का जो माडल दिखाया है, उसमें लोगों ने न सिर्फ भरोसा जताया है अपितु अपना सहयोग भी देना प्रारम्भ कर दिया है । स्वच्छ भारत के सपने में जनता की भागीदारी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है । यही नहीं विकास की रोशनी को घुप्प अंधेरे में बैठे आखिरी जन तक पहुंचाने के लिए जिस कार्यशैली को अपनाया, उससे भी लोगों में उम्मीद की एक नई आस जगी है । इस कार्य शैली का कांग्रेसी शासनकाल में नितांत अभाव रहा था । यही कारण है कि देश की अर्थव्यवस्था पिछ्ले कई वर्षों से ” स्टैंड बाय ” स्थिति में नजर आने लगी थी । यही नहीं, 90 के दशक की शुरूआती चमक दमक का चमत्कारी प्रभाव भी कम होता दिखाई देने लगा था ।
दर-असल पिछ्ले एक दशक के कांग्रेसी शासनकाल ने न सिर्फ लोगों को बेहद मायूस किया था अपितु अर्थव्यवस्था के ” रिवर्स गियर ” पर जाने की शंकाओं को भी बल मिलने लगा था । यही नहीं, लचर शासन ने भ्र्ष्ट राजनीतिक व्यवस्था के छ्तरी तले घोटालों की जो संस्कृति विकसित की उसने रही सही संभावनाओं के दरवाजे भी बंद कर दिए । ऐसे में एक नई कार्य संस्कृति व ईमानदार राजनीतिक प्रतिबद्द्ता ने कांग्रेस को आसानी से हाशिए पर डाल दिया ।
गौरतलब यह है कि इस कार्य संस्कृति से उपजे जन विश्वास को देखते कांग्रेस के कुछ दिग्गज बडबोले नेताओं को मानो सांप सूंघ गया हो । उन्हें राजनीतिक प्रतिक्रिया देने में भी असहजता महसूस होने लगी है । दूसरी तरफ केन्द्र की मोदी सरकार अब देश को पूरी तरह से कांग्रेस विहीन कर देने के अपने लक्ष्य की ओर बढ रही है । अब उसके निशाने पर है जम्मू-कश्मीर व झारखंड मे होने वाले चुनाव । देखने वाली बात यह है कि क्या यह दो राज्य भी मोदी सरकार की राजनीतिक अवधारणा व कार्य संस्कृति पर अपनी मुहर लगाते हैं अथवा नहीं । अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस के राजनीतिक वर्चस्व पर यह ताबूद की आखिरी कील होगी ।
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