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बी.बी.सी डाक्यूमेंट्री पर दंगल

यात्रा
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सरकार और भारतीय मीडिया को आपत्ति है कि बी.बी.सी. ने निर्भया कांड पर डाक्यूमेंट्री क्यों बनाई और बनाई तो दिखाई क्यों । अब हमारा मीडिया बलात्कार के आंकडों को दिखा कर यह भी साबित करने मे जुटा है कि ऐसी घटनाएं तो इग्लैंड मे भी कम नहीं होतीं । लेस्ली अडविन ने वहां की किसी घटना पर डाक्यूमेंट्री क्यों नही बनाई । अब इन्हें यह ‘ राष्ट्रीय शर्म ‘ का विषय दिखाई दे रहा है । लेकिन इन्हें इतनी सी बात समझ मे नही आ रही कि इग्लैंड हो या अमरीका ऐसी घटनाएं वहां भी कम नही होतीं लेकिन ऐसा तमाशा भी खडा नही किया जाता जैसा भारत मे होता है । भारतीय मीडिया के इस तमाशे ने ही बी.बी.सी को फिल्म बनाने के लिए उकसाया और उसने मोमबत्ती परेड के पीछे अपना आर्थिक हित साध लिया ।
यहां यह भी गौरतलब है कि इसी भारतीय मीडिया ने निर्भया कांड सहित आशाराम व तेजपाल जैसे अन्य मामलों मे जिस तरह से व्यवहार किया , क्या वह गैर जरूरी नही था । दिन दिन भर बहस के नाम पर चौपालें लगाईं । बेसिर-पैर की चर्चाएं करवाईं । अपने शब्द और द्र्ष्टिकोण को वक्ताओं के मुंह मे डालने की भरसक कोशिशें कीं और काफी हद तक सफल भी रहे । यही नही, यौन शोषण की कथाओं के साथ साथ रोचक तरीके से उपकथाएं तैयार कर दर्शकों को परोसीं । उनका प्र्स्तुतीकरण इस तरह से किया गया कि खबरों मे बलात्कारी और उसका घृणित अपराध तो गौंण हो गया , प्रमुखता से उभरीं चटपटी सेक्स उपकथाएं ।जरा याद कीजिए आशाराम बापू से जुडी खबरें  ।
जब भारतीय मीडिया अपने हित मे गैर जिम्मेदारी से इन खबरों को ‘ ओवर एक्सपोज ‘ कर रहा था तब दुनिया के लोग आंखे फाड फाड कर देख रहे थे कि भारत मे ऐसा क्या हो गया । उस समय तो हमे बडा अच्छा लगा कि दुनिया भर मे मोमबत्तियों के माध्यम से संदेश जा रहा है । अब जब इस पर डाक्यूमेंट्री बना कर दिखा दिया तो स्यापा हो रहा है । अब यह राष्ट्रीय शर्म का विषय बन गया है । आसमान सर पर टूट पडा है । मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नारे लगाने वाला देश एक अनपढ जाहिल बलात्कारी के इंटरव्यू से हिल गया ।
यहां समझने वाली बात यह भी है कि अब हमारा मीडिया इस मामले को देशभक्ति की चाशनी मे डूबो कर परोस रहा है । आम दर्शकों को यह बताने की भरसक कोशिश की जा रही है कि इससे देश की छवि खराब हुई है । लेकिन गहराई से समझने व परखने वाला दर्शक वर्ग यह भी जानता है कि इसके लिए पहले भारतीय मीडिया स्वंय कटघरे मे खडा है । जिस तरह से खबरों पर ओवर रियेक्ट किया गया और उन्हें ओवर एक्सपोज किया जाता रहा, वह तो स्वंय ही ढोल पीटने वाला काम था । आज भी ऐसी खबरों का ‘ ओवर डोज ‘ बेहुदे तरीके से जारी है । यह तो वही बात हुई कि एक लंगडे ने अपना लंगडा पैर तो ओखली के अंदर डाल कर छिपा लिया और दूसरे को कह रहा है देखो लंगडा आ रहा है ।
अब रही बात इस डाक्यूमेंट्री की तो एक् सच  यह भी है कि इसमें अपराधी मुकेश कुमार ने आपत्तिजनक बातों के साथ साथ  कुछ ऐसी बातें भी कह दी हैं  कि सरकार और कुछ महिला झंडाबरदारों को अच्छी नही लगीं । एक अनपढ बलात्कारी ने इंटरव्यू मे कह दिया कि फांसी की सजा से तो अब बलात्कार के बाद लडकियों को मार दिया जायेगा । यह कानून सही नही है । दूसरा यह भी कह डाला कि लडकियों को ज्यादा रात तक बाहर नही रहना चाहिए और न ही बाय फ्रेंड के साथ घूमना चाहिए । उन्हें बार मे भी नही जाना चाहिए और कपडे ठीक पहनने चाहिए । अब यह सुनने को भी कुछ लोग तैयार नहीं । ‘ हमारी मर्जी, हमारी मर्जी, ‘ के नारे लगाने वाले वर्ग को यह अच्छा नही लगा कि बलात्कारी ने महिलाओं को भारतीय समाज के मूल्यों मे सीमाओं के अंदर रहने की सीख दे डाली ।
दर-असल कुछ समय से अभिव्यक्ति के मामले मे एक अलग तरह की दादागिरी भी देखने को मिल रही है । यानी हम जैसा चाहें वैसा आप भी बोलो । वरना ‘ विवादास्पद ‘ का टैग लगा दिया जायेगा । इस प्रवत्ति ने कुछ गंभीर सामाजिक मुद्दों पर सकारात्मक और तार्किक बहस की संभावनाओं को ही खत्म कर दिया । लोग वैसा ही कहने लगे जैसी हवा चल रही है । बहरहाल इस प्रवत्ति के लिए भी हमारा मीडिया ही जिम्मेदार है ।
कुल मिला कर डाक्यूमेंट्री पर खिसियानी बिल्ली की तरह पंजे मारने की बजाय अगर हम कारणों को संजीदगी और गहराई से समझने का प्रयास करें तो हमारे समाज के हित मे ही होगा ।

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