हमारा देश कभी सांप-सपेरों और साधुओं का देश हुआ करता था । तब साधुओं के व्यहारिक अवगुणों के आधार पर एक कहावत गढी गई कि ‘ ज्यादा जोगी मठ उजाड ‘ ।
लेकिन अब यह सपेरों – साधुओं का देश नही बल्कि बुध्दिजीवियों का देश है । जहां हर गली मे आपको चार बुध्दिजीवी जरूर मिल जायेंगे । अब इनके अपने मठ भी हैं । लेकिन इनके व्यवहार मे जोगियों से भी ज्यादा अहम और मठाधीशी है । दूसरे को स्वीकार न करना और अपने को तुर्रम् खां समझना इनकी मूल प्रवत्ति है ।
आप पार्टी ऐसे ही बुध्दिजीवियों का मठ है । इनमे अधिकांश पत्रकारिता, लेखन, कविता कर्म , सामाजिक कार्य, एन.जी.ओ संचालन, टिप्पणीकार, व वकीलगिरी आदि क्षेत्रों की पृष्ठभूमि से आएं हैं । हर कोई अपने को ही तुर्रम खां समझ रहा है और दूसरे को कम आंक रहा है । ठीक उस टिटहरी की तरह जो अपनी टांगे ऊपर कर यह समझने लगती है कि आसमान को उसी ने संभाल रखा है । अब इस सोच के चलते तो इस मठ का बिखराव होना ही था ।
दर-असल किसी संगठन को चलाने के लिये यह जरूरी है कि आपको किसी न किसी को अपना नेता मानना होता है और उसे अपने से श्रेष्ठ भी स्वीकार करना पडता है । लेकिन यहां ऐसा कतई नही है ।
वैसे इस मठ का बिखराव कोई आश्चर्य का विषय नही है । जानकार अच्छी तरह से जानते हैं कि इस किस्म के जीवों के बौध्दिक संगठनों मे भी उठा-पटक कम नही होती । एक दूसरे की टांग खीचने मे ही इंनके बौध्दिक जीवन का एक बडा हिस्सा खर्च हो जाता है । बौध्दिक जगत मे इनकी मठाधीशी के बडे बडे किस्से सुनने को मिलते हैं । सच तो यह है कि इस किस्म के चार लोग चार दिन साथ नही चल सकते । अहम और महत्वाकांक्षाओं का टकराव इनके मठ के बिखराव का कारण बनता है ।
मजेदार बात तो यह रही कि सभी बुध्दिजीवी नेता एक दूसरे का स्टिंग आपरेशन किए बैठे थे । अब मीडिया को स्टिंग दिखा कर बता रहे हैं कि देखो ये बंदा तो ऐसा था, ऐसा बोलता था । भाई कमाल के लोग हैं एक ही पार्टी के सदस्य हैं और आपस मे पार्टी मुद्दों पर विचार विमर्श भी करते रहे और बगल मे छिपा कैमरा भी चालू रखा । क्या बात है । यानी भरोसा किसी का किसी पर कभी रहा ही नही ।
बहरहाल, आप पार्टी के अंदर मचे इस घमासान का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि आज दिल्ली के वे मतदाता जिन्होने इस पार्टी को एक बार नही बल्कि दो बार अपना भरपूर समर्थन दिया ठ्गा सा महसूस कर कर रहे हैं | आपसी खींचतान मे जो बातें सामने आ रही हैं इसकी उम्मीद तो दिल्ली के मतदाताओं को कतई नही थी | बडी बडी बातें करने वाले इसके नेता घटिया राजनीति का ऐसा रंग दिखायेंगे शायद यह कल्पना से परे था | देखा जाय तो यह बिखराव आप पार्टी का नही, बल्कि लाखों उन मतदाताओं के सपनो और भरोसे का बिखराव है जो दिल से जुडाव महसूस करने लगे थे |
इसके अलावा राजनीति के इस ड्रामे ने उन संभावनाओं पर भी एक प्रशनचिन्ह लगा दिया है जो ‘ अलग किस्म की राजनीति’ के बैनर तले विकसित होने लगी थी | लोगों को यह भरोसा जगने लगा था कि भ्र्ष्ट और मूल्यविहीन राजनीति को साफ़ सुथरी राजनीति के द्वारा हाशिए पर डाला जा सकता है | लेकिन शायद इससे कहीं न कहीं यह भरोसा भी आहत हुआ है | बहरहाल घात- प्रतिघात , आरोप-प्रत्यारोप और स्टिंग आपरेशन की यह छिछोरी राजनीति क्ल किस करवट बैठेगी, पता नहीं | लेकिन आज के बिगड़े हालातों मे उम्मीद जो एक किरण फ़ूटी थी, उसका अस्तित्व जरूर खतरे मे पडता दिखाई दे रहा है | यह इसका सबसे दुखद पहलू है |
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