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विचारों पर पहरे की रिहाई

यात्रा
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साइबर दुनिया की उडान जितनी तेजी से अपनी ऊंचाईयों तक पहुंची उतने ही इसमें उलझाव भी दिखाई देने लगे । भारत जैसे विकासशील देश मे यूरोपीय देशों की तुलना मे यह साइबर दुनिया अभी अपने शुरूआती दौर मे है लेकिन खतरे कई गुना । अब तो अन्य किस्म के अपराधों के साथ साइबर अपराध ने भी तेजी से अपनी जडें जमाना शुरू कर दिया है । इन खतरों के मद्देनजर इंटरनेट की तिलिस्मी दुनिया को नियंत्रित करने के लिए आईटी एक्ट सन 2000 मे बना और 2008 मे इसमें कुछ परिवर्तन किए गये । लेकिन इसकी धारा 66ए मे जल्द ही विवादास्पद होने का टैग लग गया ।

शुरूआती दौर मे तो इस धारा को लेकर सबकुछ सामान्य ही रहा लेकिन बहुत जल्द ही सत्ता मे बैठे लोगों और कुछ रसूखदारों ने इसका दुरूपयोग करना शुरू कर दिया । यहीं से इस पर बहस व चर्चा की शुरूआत हुई । अभी हाल मे उत्तर प्रदेश के प्रभावशाली मंत्री आजम खान के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट डालने के आरोप मे बरेली के एक छात्र को जिस तरह से गिरफ्तार किया गया, उस पर पूरे देश मे तीखी प्रतिक्रिया हुई । अंतत: उच्चतम न्यायलय ने एक जनहित याचिका के माध्यम से ह्स्तक्षेप करते हुए इस एक्ट की 66 ए धारा को खारिज कर दिया । इस निर्णय का पूरे देश ने स्वागत किया ।

दरअसल आईटी एक्ट की इस धारा को उच्चतम न्यायालय ने संविधान मे अनुच्छेद 19 (1) मे दिये गये अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के खिलाफ माना है । न्यायालय का मानना है कि 66-ए की भाषा अस्पष्ट है । इसमे न तो आरोपी को पता है और न ही सरकारी अथारिटी को कि क्या अपराध है और क्या नही । इस धारा के चिढाने वाला, असहज करने वाला, पीडादायक और अपमानजनक जैसे शब्द अस्पष्ट हैं ।

अपराध स्पष्ट रूप से परिभाषित न होने के कारण ही इसका दुरूपयोग किया जाने लगा था । यही कारण है कि बाल ठाकरे के निधन पर एक टिप्पणी करने के अपराध मे दो लडकियों को गिरफ्तार किया गया । उन्होने सिर्फ यह लिखा था कि मुंबई डर की वजह से बंद हुई है न कि सम्मान की वजह से । तब इस गिरफ्तारी को लेकर राजनीति काफी गर्म हुई थी लेकिन जल्द ही सबकुछ भुला दिया गया । कुछ ऐसा ही पांडेचरी मे हुआ । वहां एक व्यक्ति को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर दिया गया उसने पी.चिदंबरम के बेटे के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक लिखा । इसी तरह कुछ समय पहले ममता बनर्जी के एक कार्टून को लेकर भी गिरफ्तारी की गई । मई 2012 मे मुंबई के एक व्यक्ति को नेताओं के अपमांजंनक चुटकले शेयर करने के लिए जेल की हवा खानी पडी । ऐसे तमाम मामले हाल के वर्षों मे होते रहे हैं । इधर कुछ समय से तो यह एक सिलसिला ही बन गया । राजनेताओं की थोडी सी आलोचना कर देना इस धारा मे अपनी गिरफ्तारी को न्योता देना जैसा हो गया । इस तरह विरोध और असहमति को दबाने का यह एक हथियार बन गया ।

इस धारा का इतना दुरूपयोग किया जाने लगा कि आम आदमी फेसबुक पर कुछ भी लिखने व शेयर करने से डरने लगा । राजनीतिक टिप्पणी लिखने से पहले वह कई बार सोचता कि कहीं किसी को इसमे कुछ आपत्तिजनक न लग जाए और वह मुसीबत मे फंस जाए । अब इस धारा के हटने से उसे कुछ राहत महसूस हुई है । लेकिन ऐसा भी नही है कि इस धारा को हटाने के बाद कुछ भी लिखने का असीमित अधिकार मिल गया हो । राहत बस इतनी सी है कि अब किसी को तुरंत गिरफ्तार नही किया जा सकता । पहले की तरह सरकार के पास फेसबुक, टिवटर अकाउंट आदि को ब्लाक करने का अधिकार मौजूद है ।

गौर करने वाली बात यह भी है कि अभी भी आई.पी.सी की तमाम धाराएं हैं जिनसे साइबर दुनिया से जुडे अपराधों को रोका जा सकता है और प्रभावी हस्तक्षेप भी किया जा सकता है । जैसे कि देशद्रोह जैसी बातें लिखने या शेयर करने के विरूध्द आई.पी.सी की धारा 124 ए के तहत मुकदमा दायर किया जा सकता है । इसमे उम्रकैद तक की सजा का प्राविधान है । इसी तरह दो संप्रदायों के बीच नफरत फैलाने वाली किसी भी सामग्री के विरूध्द धारा 153 के तहत कार्रवाही की जा सकती है । इसमे 3 साल तक की सजा का प्राविधान है । जानबूझ कर अफवाह फैलाने के लिए आईपीसी की धारा 505 है । इसमे भी 3 साल तक की सजा हो सकती है । यह धाराएं प्रिंट, इलेक्ट्रानिक व अन्य सभी माध्यमों मे लागू होती हैं । यानी एक तरह से 66-ए हटने के बाद भी अगर इंटरनेट पर कोई सामग्री से आई.पी.सी की धाराओं का उल्लघंन होता है तो कार्रवाही होगी ।

बहरहाल, इस विवादास्पद धारा के हटने से सोशल मीडिया मे सक्रिय लोगों को थोडा राहत महसूस हुई है । अब कोई उन्हें रातों रात गिरफ्तार नही कर सकेगा । लेकिन यहां यह समझना भी जरूरी है कि इससे किसी को भी कुछ भी लिखने के असीमित अधिकार नही मिल जाते । यह सच है कि इस धारा के दुरूपयोग से अभिव्यक्ति की आजादी प्रभावित होने लगी थी लेकिन समाज व देश के प्रति जिम्मेदारी जस की तस है । ऐसा कुछ भी नही लिखा या दिखाया जाना चाहिए जिससे राष्ट्र व समाज का अहित हो ।

यह भी सच है कि साइबर दुनिया से हमारा रिश्ता अभी बहुत पुराना नही है । हम अभी शुरूआती दौर मे हैं इसलिए बहुत कुछ सीखना शेष है । यह हमारी एक ताकत है और इसलिए इसका उपयोग किस तरह किया जाना चाहिए , यह समझना और सीखना भी हमारे लिए बेहद जरूरी है । हर चीज की अपनी सीमाएं होती हैं हमें सोशल मीडिया मे अपनी इन सीमाओं को भी समझना होगा । समाज हित व व्यक्तिगत आजादी का संतुलन ही इसे हमारी दुनिया के लिए उपयोगी बना सकेगा अन्यथा इसके दुष्परिणामों को झेलना भी हमारी नियति होगी ।

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