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प्रतियोगी परीक्षाओँ की साख

यात्रा
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देश के गाँवकस्बोँ और शहरोँ मे मातापिता अपने बच्चोँ को हमेशा कहते आए हैँ कि पढोगे लिखोगे बनोगे साहब, खेलोगे कूदोगे होगे खराब

देश मे आज के सँदर्भ मे खेलंते कूदने से बिगडने वाली बात चाहे पूरी तरह से सत्य न भी हो लेकिन पढ लिख कर साहब बनने के सपनोँ मे भ्र्ष्टाचार व नकल का काला साया जरूर मँडराने लगा है ।

अभी हाल मे उत्तरप्र्देश लोकसेवा आयोग की सबसे प्रतिष्ठित पी.सी.एस. परीक्षा के प्रारँभिक चरण के प्रशन पत्र लीक होकर बाजार मे आ गए । वाटसऐप के माध्यम से पाँचपाँच लाख रूपये मे इन्हेँ बेचा गया । यह सबकुछ् परीक्षा प्रारंम्भ होने के एक घंटे के अंदर हुआ ।

ऐसा पहली बार नही हुआ है । इसके पूर्व प्रदेश की प्रीमेडिकल परीक्षाओं मे व्यापक स्तर पर नकल और संगठित भ्र्ष्टाचार के मामले प्रकाश मे आए हैं । प्रतिवर्ष इस मेडिकल परीक्षा मे मुन्ना भाई पकडे जाते हैं लेकिन यह सिलसिला बदस्तूर जारी है । इंजीनियरिंग परीक्षा मे भी नकल का आरोप लगता रहा है । कर्मचारी चयन आयोग व रेलवे बोर्ड की परीक्षाओं मे भी कई बार मुन्ना भाई पकडे गये हैं और प्रश्नपत्र लीक होने की घटनाएं सामने आई हैं ।

इधर कुछ वर्षों मे प्रतियोगी परीक्षाओँ मे यह बीमारी तेजी से बढी है । तीन साल पहले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के परास्नातक दाखिले के लिए होने वाली परीक्षाओं मे अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग कर नकल करने के प्रयास किए गये थे । इसका सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि नकल के यह प्रयास अब बहुत ही संगठित व अत्याधुनिक तकनीक के उपयोग से किए जा रहे हैं । इनमें उच्चस्तर के लोगों की भूमिका भी संदेह के घेरे मे है । लेकिन विडंबना यह है कि ऐसे मामलों मे कुछ दिन शोर मचने की बाद जांच के परिणामों के बारे मे कोई जानकारी नही मिलती ।

शिक्षा व रोजगार से जुडे इस पहलू का एक स्याह पक्ष यह भी है कि कालेज व विश्वविधालय स्तर की परीक्षाएं भी नकल व भ्ष्टाचार से मुक्त नही हैं । अभी हाल मे बिहार की हाईस्कूल व इंटरमीडिएट परीक्षा मे नकल का जो नजारा पूरे देश ने देखा वह अदभुत था । यानी एक तरह से शिक्षा का पूरा क्षेत्र ही भ्रष्टाचार का शिकार है । थोडा और पीछे जाएं तो स्कूल कालेजों मे होने वाले प्रवेश व प्रवेश परीक्षाएं भी हेरा फेरी से मुक्त नही हैं । कुल मिला कर ऐसा कुचक्र बन गया है कि मेधावी छात्रों का भविष्य खतरे मे दिखाई देने लगा है ।

नकल और भ्र्ष्टाचार के दलदल मे गहरी धंसती हुई इन प्रतियोगी परीक्षाओं की साख सालदरसाल खत्म हो रही है । इससे सबसे बडा अहित उन छात्रों का हो रहा है जो इन परीक्षाओं के माध्यम से सरकारी सेवा मे आने का सपना देखते हैं । इसके लिए वह अपने गांवकस्बों को छोड शहरों मे रह कर कोचिंग और किताबों मे पैसा खर्च करते हैं । रात दिन की मेहनत के बाद उन्हें पता चलता है कि जिस प्रश्नपत्र को वह देकर आए हैं वह तो पहले से ही लीक है । ऐसे मे उनकी मनोदशा क्या होगी, इसे सिर्फ सोचा जा सकता है ।

बार बार परीक्षाओं मे नकल होने का बखेडा व उच्च स्तर पर धांधली की खबरें इनके उत्साह और मनोबल को भी तोडती हैं । उनका विश्वास इन परीक्षाओं से उठने लगता है । एकदिन वह कुंठित हो जाते हैं । यही हालात रहे तो एकदिन मेधावी छात्र सरकारी सेवाओं मे प्रदेश की इन प्रतियोगी परीक्षाओं से ही किनारा कर लेंगे और निजी क्षेत्र मे अपने भविष्य की तलाश करेंगे । ऐसे मे सरकारी सेवा के विभिन्न क्षेत्रों के लिए दोयम दर्जे के अभ्यर्थी ही मिल सकेंगे और उनके हाथों मे देश व प्रदेश के शासन की जिम्मेदारी होगी । तब देश किस दिशा को अग्रसर होगा, आसानी से सोचा जा सकता है ।

देश व समाज मे जरूरी है कि शिक्षा व रोजगार के क्षेत्र को भ्र्ष्टाचार से पूरी तरह से मुक्त किया जाए । इसके लिए कडे दंड की व्यवस्था बेहद जरूरी है । अभी तक इन मामलों मे अपराधी के पकडे जाने पर उसे बामुश्किल दो एक साल की ही सजा हो पाती है । ऐसे मे अपराधियों को यह घाटे का सौदा नजर नही आता । किस्मत साथ दे गई तो लाखोंकरोडों की कमाई और अगर पकडे गये तो मात्र दोएक साल की सजा । जरूरी है कि सजा सख्त और लंबी हो । यहां तक कि इसमे आजीवन कारावास का भी प्रावधान हो ।

इसके अतिरिक्त अब आधुनिक तकनीक ने भी इस समस्या को और भी पेचीदा बना दिया है । अपराधी अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग कर साफ बच निकलते हैं । इसलिए जरूरी है कि साइबर अपराध से निपटने के लिए पुलिस व प्रशासन को भी नये तरीकों से लैस होना होगा । ऐसे तरीके खोजने होंगे कि नकल व पर्चा लीक होने की संभावना ही न रहे । इसमे कोई संदेह नही कि अगर हमे सरकारी सेवा मे प्रतिभाओं की जरूरत है तो हमे इन प्रतियोगी परीक्षाओं की साख को हर कीमत पर बनाए रखना होगा ।

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