Menu
blogid : 18110 postid : 978063

पोर्न साइटस के प्रतिबंध पर सवाल

यात्रा
यात्रा
  • 178 Posts
  • 955 Comments

एक कहावत है कि बाल नोचने से मुर्दा हल्का नही होता । लेकिन लगता है कि सरकार मे बैठे कुछ विद्दानों को यह भरोसा है कि मुर्दा जरूर हल्का हो जायेगा । उच्चतम न्यायालय ने बिगडते सामाजिक परिवेश को लेकर पोर्न साइटस पर कुछ टिप्पणी की थी । इसे आधार बना कर अब सरकार ने टेलीकाम आपरेटरोँ और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों को लगभग 857 पोर्न साइटस ब्लाग करने को कहा है । वैसे देखा जाए तो इसमे कुछ भी नियम विरूध नही है । आर्टिकल 19(2) सूचना तकनीक कानून मे प्रावधान है कि सरकार ऐसा कर सकती है । लेकिन बात इतनी भर नही है ।

दरअसल इधर कुछ समय से या यूं कहें दिल्ली मे हुए दामिनी कांड के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार जिस तरह सामाजिक मुद्दों पर भारी दवाब मे दिखाई दी थी वह अब भी जारी है । इस बहुचर्चित बलात्कारहत्या कांड की देश भर मे जिस तरह से प्रतिक्रिया हुई थी उसने मनमोहन सिंह जैसे कमजोर प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को पूरी तरह घुटनों पर ला खडा किया था । हाथ पैर फूल जाने वाली जैसी स्थिति मे मनमोहन सरकार ने आपाधापी मे बैसिर पैर के कानून बनाये । इस बदहवास स्थिति मे बलात्कार व ह्त्या किये जाने पर मृत्यु दंड का जो कानून बनाया वह युवतियों व महिलाओं के लिए आत्मघाती सिध्द हो रहा है । अब अधिकांश मामलों मे अपराधी न बांस रहेगा न बजेगी बांसूरी की तर्ज पर बलात्कार के बाद ह्त्या करना अपने हित मे समझने लगा है ।

दरअसल उन कडे कानूनों का तनिक भी प्रभाव दिखाई नही दे रहा । बल्कि इसके विपरीत बलात्कार की शिकार युवतियों को अपनी जान से हाथ धोना पड रहा है । सामाजिक मुद्दों को लेकर कुछ ऐसी बदहवासी मोदी सरकार मे भी दिखाई दे रही है । एक समय उच्चतम न्यायालन ने चाइल्ड पर्नोग्राफी को लेकर अपनी चिंता जाहिर की थी लेकिन साथ ही नागरिकों के निजी जीवन मे हस्तक्षेप के पहलू पर भी गौर किया था । अब सरकार न्यायालय की इन टिप्पणियों को लेकर पोर्न साइटस को पूरी तरह से ब्लाग करना चाहती है ।

अब सवाल यहां यह है कि क्या सिर्फ पोर्न साइटस को ब्लाग कर देने मात्र से सामाजिक परिवेश मे घुली अश्लीलता खत्म हो जायेगी । देखा जाए तो आज हम जिस अश्लीलता को लेकर चिंतित हैं वह कई रूपों मे हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है । ज्यादा दूर न भी जाए तो क्या हमारी फिल्मे आज परिवार के सभी लोगों के बीच देखने लायक बची हैं । यह फिल्में जिस अधकचरी अश्लीलता को परोस रही हैं वह तो पोर्न फिल्मों यानी खुली नंगई से भी ज्यादा खतरनाक हैं । दोहरे अर्थों वाले गानों की जो छोंक लगाई जा रही है, वह अलग से । लेकिन इधर धर्म व संस्कृति तथा महिला हितों के ठेकेदारों की नजर नही जाती । कारण समझ से परे नही है ।

इसके अतिरिक्त विग़्य़ापनों की एक दुनिया है जिसमे चार इंच की पेंटी पहना कर कानून को अंगूठा दिखाते हुए वह सबकुछ परोस दिया जाता है जिसे हम अश्लील कहते हैं । मांसल देह के भूगोल का यह खुला प्रदर्शन विग़्य़ापनों मे आम बात है । लेकिन आश्चर्य कि यहां भी किसी को अश्लीलता नही दिखाई देती । माडलिंग की यह अधनंगी बालाएं हमारे किशोरों व युवाओं मे जिस उष्मा का संचार करती हैं वैसा तो शायद यह बदनाम पोर्न फिल्में भी नहीं ।

टी.वी. चैनलों के विज्ञापन जब अपनी बेशर्मी का प्रदर्शन करते हैं तो मांबाप बच्चों की उपस्थिति मे इधर उधर देखने का अभिनय करने लगते हैं । लेकिन यहां भी किसी को कोई आपत्ति नहीं । यानी कुल मिला कर हम अश्लीलता के एक ऐसे स्वर्ग मे बैठे हैं जहां से एकाध चीज को हटा देने से कोई खास फर्क नही पडने वाला । वैसे भी सी.डी/डी.वी.डी के रूप मे भी यह स्वर्ग आसानी से उपलब्ध है । भय इस बात का भी है कि कहीं इस तरह के आधे अधूरे प्रयास फिर मस्तराम की दुनिया की वापसी का कारण न बन जाएं जो जहर से भी ज्यादे जहरीले साबित होंगे ।

यही नही टविटर पर रोज लगभग 5 लाख न्यूड फोटो पोस्ट किये जाती हैं और यह सब जानबूझ कर । जिससे किशोरकिशोरियों को इस अफीम का आदी बनाया जा सके । लेकिन टविटर के पास इन्हें ब्लाग करने की कोई नीति नही है । रंगीन स्वर्ग की इस दुनिया को यहां कैसे रोक पायेंगे ।

यानी कुल मिला कर इससे कोई विशेष लाभ नही मिलने वाला । हम आधुनिकता व तकनीक की दुनिया मे इतना आगे निकल आये हैं कि इन चीजों को इस तरह के प्रयासों से रोक पाना संभव नही । सच तो यह है कि बदलाव के इस दौर मे हम स्वयं कनफ्यूज दिखाई दे रहे हैं । एक तरफ तकनीक से लबरेज आधुनिकता हमे लुभा रही है तो दूसरी तरफ हमारे पारंपरिक संस्कारों ने अभी पूरी तरह दम नही तोडा है । पहले हम स्वयं निर्णय लें कि आखिर हम चाहते क्या हैं ।

Read Comments

    Post a comment