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अतिवाद का शिकार होता महिला सशक्तिकरण

यात्रा
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महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों को लेकर  इधर जो प्रवृत्ति देखने  को मिली है उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि मर्ज बढता गया, ज्यों ज्यों दवा की | शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब महिला उत्पीडन, शोषण, बलात्कार आदि से संबधित खबर किसी अखबार के मुख्य पृष्ठ का हिस्सा न बने | मुख्य खबर के अलावा दर्जन भर ऐसी खबरों का अंदर के पन्नों पर छ्प कर मुंह चिढाना तो आम बात है | लेकिन अब आश्चर्य इन खबरों पर नही बल्कि इनको लेकर हो रही राजनीति, बयानबाजी व पाखंडपूर्ण प्रदर्शनों पर है | यह समस्या को एक अलग ही रंग और नजारे मे पेश कर रहे हैं | कोढ पर खाज यह कि महिलाओं से जुडी ऐसी खबरों के साथ मीडिया का व्यवहार भी अजीबोगरीब है | बल्कि अब तो ऐसा प्रतीत होने लगा है कि महिलाओं के हितों से किसी को उतना लेना देना नही जितना शोर मचाने और इसकी आड मे अपनी रोटियां सेकनें से है |

कैसे तिल को ताड बनाया जाता है, यह देखना हो तो महिला संबधित खबरों पर न्यूज चैनलों की भूमिका को देखिए | गैर जिम्मेदारी और व्यवसायिक स्वार्थ का ऐसा काकटेल अन्यत्र देख पाना संभव नही | सियारों की तरह सामुहिक आवाजें निकाल कर इन्होनें जिस सामाजिक परिवेश को तैयार किया है, आज उसका नतीजा दिखाई देने लगा है | ऐसा नही है कि महिला कानूनों का दुरूपयोग नही हो रहा लेकिन वहां बोलने का जोखिम कोई नही उठाना चाहता | बस जयकारे तक सारी सोच सीमित है | कभी कभी तो झूठी दुष्कर्म की खबरों पर भी इतना हल्ला मचा दिया जाता है कि मानो आसमान सर पर गिर गया हो | दो दिन बाद जब मामला उस किस्म का नही निकलता फ़िर एक चुप्पी साध ली जाती है |

रही सही कसर पूरी की हमारी राजनीतिक संस्कृति ने | एक मुश्त महिला वोटों को अपने पक्ष मे करने की राजनीतिक दलों की चुहा दौड ने भी एक पाखंडपूर्ण महिला जयकारे का ऐसा माहौल बनाया जिसमे सच को कहना , लिखना या विरोधी विचार रखना संभव नही रहा | लिहाजा सर्वत्र महिला हितों की कांव-कांव सुनाई देनी लगी है | परिणाम्स्वरूप आज जो परिवेश बना है उसमें आप महिलाओं के जयकारे के अलावा कुछ भी कहने का साहस नही जुटा सकते | सिर्फ़ जयकारा ही स्वीकार्य है | लेकिन विडंबना तो यह है कि एक तरफ़ जयकारे लगाए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ़ दुष्कर्म की घटनाएं और उनकी विभत्सता बढती जा रही है | लेकिन ऐसा क्यों ? इस सवाल पर सब मौन हैं | किसी के समझ मे कुछ नही आ रहा |

अभी हाल मे दुष्कर्म को लेकर दिये गये एक बयान पर अदालत ने सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को अदालत मे हाजिर होने के लिए समन जारी किया है | उन्होने अपने बयान मे कहा कि एक महिला से चार लोग दुष्कर्म नही कर सकते | इसके कुछ दिन पूर्व दिल्ली मे आप पार्टी के नेता सोमनाथ भारती के बयान पर भी कुछ दलों और महिला संगठनों ने काफ़ी हो –हल्ला मचाया था | उन्होने कहा था कि दिल्ली पुलिस को हमारे अधीन कर  दें तो रात के 12 बजे भी खूबसूरत महिलाएं दिल्ली मे बिना किसी खौफ़ के घूम सकेंगी | इन बयान मात्र से दिल्ली का पारा यकायक बढ जाता है | नेतागिरी शुरू हो जाती है | ऐसा दो एक बार नही, बल्कि समय समय पर होता रहता है |

आज के सामाजिक-राजनैतिक हालातों को देख कर तो लगता है कि इस देश मे महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों के अतिरिक्त कोई दूसरी समस्या है ही नही | भ्र्ष्टाचार बढ्ता रहे, मिलावट से लोग मरते रहें, किसान आत्महत्या करते रहें, बुजुर्गों की सरेआम ह्त्या होती रहे, शिक्षा मंदिर लूट खसोट मे डूबे रहें इससे कोई फ़र्क नही पडता | इनसे जुडी खबरें न तो सत्ता के गलियारों मे बहस का विषय बनती हैं और न ही न्यूज चैनलों की चौपालों पर | लेकिन महिलाओं से जुडी उत्पीडन या दुष्कर्म की छोटी से छोटी खबर भी राजनीतिक भूकंप ला देने मे सक्षम है | ऐसे ही भूकंपों से दिल्ली कई बार दहल चुकी है |

यही नही, आप देश के अंदर इस्लामिक झंडे  शान से फ़हरा सकते हैं | पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने मे भी कोई बुराई नही | देश के दुश्मन आतंकवादियों को फ़ांसी की सजा न हो इसके लिए खुले आम समर्थन जुटा सकते हैं और फ़ांसी के विरूध्द सडकों पर उतर विरोध भी जता सकते हैं | ओवेसी जैसे इस्लाम के झंडाबरदार कुछ भी कहते रहें, किसी को कोई आपत्ति नही | कला के नाम पर हिंदु देवी-देवताओं के अश्लील चित्रों को बनाने मे भी कोई बुराई नही | धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदु संस्कृति व मान्यताओं का मजाक उडाने की भी पूरी छूट है | इन सबसे इस महान देश के महान लोकतंत्र को कोई फ़र्क नही पडता | लेकिन अगर किसी ने महिलाओं के जयकारे के अलावा कुछ अलग सा बोल दिया तो उसकी खैर नही | बस यही सबसे बडा अपराध है | इसके लिए आपके विरूध्द समन भी जारी हो सक्ता है | इसलिए इससे बचे रहें और बाकी मे लोकतंत्र व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आनंद लेते रहें |

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