चुनाव की जीत हार कैसे राजा को रंक और रंक को राजा बना देती है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है बिहार चुनाव । एक राज्य के चुनाव परिणामों ने देश मे पूरी राजनीतिक फिजा को ही बदल कर रख दिया है । वह लोग जो कल तक मोदी के जयकारे लगा रहे थे आज हार के लिए उन्हें जिम्मेदार मान रहे हैं । जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते चुनाव लडने तक की इजाजत नही वह अपनी पार्टी की जीत पर बल्लियों उछ्ल रहे हैं । मरणासन्न अवस्था मे जा चुकी कांग्रेस पार्टी अब चुनावी नैतिकता का पाठ पढा रही है । इसे कहते हैं लोकतंत्र मे चुनावी जीत की महिमा ।
यह सबकुछ राजनीतिक गलियारों तक ही सीमित नही बल्कि आमजन मे भी आलोचनाओं का बाजार गर्म है । मोदी सरकार की असफलता ने मानो सभी को पोस्टमार्टम करने का अधिकार दे दिया हो । लेकिन तुर्रा यह कि साठ दशकों का राजंनीतिक इतिहास किसी को याद नही । किसने देश और समाज को क्या दिया । इस समय तो कुल जमा हिसाब मोदी सरकार के खिलाफ ही निकल रहा है ।
इस संदर्भ मे थोडा पीछे जायें तो शुरूआती वर्षों मे तो नेहरू जी की शांति धुन और गुलाब की खुशबू पर मोहित रहा पूरा देश । चीन युध्द मे देश की नाक कटवाई , आत्म सम्मान आहत हुआ लेकिन किसी ने कोई पुरस्कार, मेडल नही लौटाए । हार के बाबजूद सबकुछ आसानी से स्वीकार कर लिया गया ।
मनमोहन सिंह जी के समय् भ्र्स्टाचार के लिए सारे दरवाजे खोल दिए गये । बडे बडे कारनामे हुए । कहीं कोई खाश आक्रोश नही दिखा । विरोधस्वरूप किसी ने कुछ नही लौटाया । अब एक ऐसा इंसान आ गया है जो न तो नेहरू की तरह मीठा है और न ही मनमोहन जी की तरह चुप्पा । जिसका न तो कोई बेटा है और न बेटी और न ही दामाद ।इस देश की ही जनता ने उसे ऐतिहासिक जीत दिलाई है लेकिन उसे बर्दाश्त करने को कोई तैयार नही । अपना गुस्सा उतारने के लिए जिसके पास जो है वह वापस करने की होड मे लगा है । यही नही, डेढ साल का बही-खाता लेकर भी बैठा है कि हिसाब दो क्या किया । शायद यह भी याद नही कि जनादेश पूरे पांच साल के लिए मिला है ।
आजादी के बाद अब तक राज्यों और केंन्द्र मे न जाने कितनी सरकारें आईं और गईं । सभी ने अपने घोषणा पत्रों मे क्या क्या सब्ज बाग दिखाये, और कितने पूरे किये , वह अब किसी को याद नही । उनसे कोई हिसाब नही मांगा । लेकिन लगता है मोदी जी ने सभी का उधार खाया है इसलिए सभी हिसाब मांगने लगे हैं वह भी कुल डेढ साल का । आजादी के छ: दशकों बाद भी गांव-कस्बों मे आज भी महिलाएं अपनी शर्म हया त्याग कर खुले मे शोच जाने को मजबूर हैं , इसके लिए कौन जिम्मेदार है, इस पहलू पर कोई सोचने को तैयार नही । आज भी गांवों का मतलब सिर्फ चार घंटे की बिजली क्यों है ? इस पर किसी का ध्यान नही । बुनियादी सुविधाओं की बाट जोहते गांवों के दर्द के लिए किस सरकार व प्रधानमंत्री को जिम्मेदार माना जाए , क्या इस पर सोचा जाना जरूरी नही ।
यही नही, अजान की आवाज सुनाई देने पर अपने कानों मे हाथ रखने वाले आज सहिष्णुता की बात कर रहे हैं । जिन्होने पूरे देश मे सिखों का कत्लेआम किया वह धार्मिक एक्ता का नारा लगा रहे हैं । लालू जैसे जोकर जिन्होनें पूरे बिहार की छवि ही जोकर जैसी बना रखी है कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार मे पद की गरिमा नही रखी । और तो और जिन भाजपा नेताओं का एक पैर कब्र मे जा चुका है उन्हें शिकायत है कि उन्हें ऊंची कुर्सी नही दी गई ।
कभी इंदिरा गांधी जी की दबंगई के चलते उनके अगूंठे के नीचे रहने वाले कांग्रेसी जिन्हे इमरजेंसी की याद होगी मोदी जी पर तानाशाही का आरोप लगा रहे हैं । वामपंथी जिनकी खुद की जमीन इतनी कम हो गई है कि खडे रहने के लिए भी कोई ठौर नही मिल रहा मोदी जी के जनाधार कम होने का दावा कर रहे हैं । मुंबई के फिल्मी हीरो व फिल्मकार जिनकी नंगई ने हमारे बच्चों के संस्कार बिगाड दिये और बच्चों के साथ साथ बैठ कर फिल्म देखना मुश्किल कर दिया है वह लोग देश के माहौल खराब होने की बात कर रहे हैं ।
वाह रे लंगडों अपना लंगडा पैर ओखली मे छिपा कर दूसरे को चिढा रहे हो कि देखो वो लंगडा है । कमाल हो भाई । एक पुरस्कार तो देना बनता है । लेकिन क्या भरोसा उसे भी लौटा दो । लौटाने का फैशन जो चल रहा है ।
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