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‘ राष्ट्रहित ‘ मे अलोकप्रिय होती मोदी सरकार

यात्रा
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अगर भारत मे किसी नेता को अपने पैर मे कुल्हाडी मारनी हो तो कुछ ज्यादा करने की जरूरत नही बस राष्ट्र्हित के फैसले ले और फिर देखे उन फैसलों का कमाल । उन फैसलों से उसका जनाधार बढता है या घटता है । लेकिन भारतीय राजनीति मे ऐसे  नेता बहुत तलाशने पर ही मिलेंगे । बहरहाल मौजूदा दौर मे मोदी जी उनमे से एक हैं । गौरतलब यह है कि बिहार चुनाव हारने के बाद भी मोदी जी यह न समझ सके कि यह देश ‘ राष्ट्र्हित ‘  की नही ‘ अपने  हित ‘ की भाषा समझता है और राष्ट्र्हित के फैसले उन्हें लोकप्रिय नही बल्कि अलोकप्रिय बना रहे हैं ।
पहले गैस सब्सिडी छोडने के लिए गुहार लगाई और अब द्स लाख से ज्यादा वार्षिक आय वालों की सब्सिडी खत्म करने का फैसला लिया गया है । अब बताइए देश हित के इस फैसले से कौन खुश होगा ।
सभी केन्द्रीय कार्यालयों मे कामकाज सुधारने व अनुशासन लाने के लिए बायोमेट्रिक सिस्टम लागू किया । ‘ आराम ‘ से आने वाले कर्मियों को जब 9.30 पर आकर 6 बजे तक काम करना पड रहा है  तो मोदी जी को पानी पी पी कर नही कोसेंगे तो क्या प्रशंसा मे गीत गायेंगे । यही नही, सभी केन्द्रीय कर्मियों को अपनी संपत्ति का पूरा विवरण सभी बैंक खातों सहित देना होगा यानी भ्र्ष्ट तरीकों से संपत्ति अर्जित करने के रास्ते भी बंद किये जा रहे हैं । सात पीढीयों के लिए  ” कमा कर ”  रखने वालों को यह कदम अच्छा लगेगा ?
सातवें वेतन आयोग के संदर्भ मे कुछ बातों के कयास लगाये जा रहे हैं । एक यह भी कि संभवत: मोदी सरकार जल्द रिटायरमैंट करने की बात सोच रही है। अब बताइए जिस देश मे  हर कर्मचारी व अधिकारी चाहता है कि चाहे एक पैर कब्र मे क्यों न चला जाए वह नौकरी करता रहे तो अब इस कदम से क्या वे खुशी मे भांगडा करेंगे या फिर ………खैर बात यहीं तक नही है । सयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद मे भारत को स्थायी सीट मिल सके इसके लिए मोदी जी प्रभावशाली देशों की यात्रा कर उन्हें राजी करने का प्रयास कर रहे हैं जिससे वह भारत का समर्थन करें । उन्हें पता है तब भारत अंतरराष्ट्रीय मंच मे एक ताकत के रूप मे उभरेगा । लेकिन इससे किसी को क्या मतलब ? अलबत्ता आरोप यह जरूर है कि प्रधानमंत्री सैर सपाटा कर रहे हैं ।
पास पडोसी देशों की यात्रा कर उन्हें अपने पाले मे रखने की कोशिशों मे लगे हैं  जिससे पाकिस्तान व  चीन पर दवाब बनाया जा सके । युध्द की स्थिति मे यह पडोसी देश अगर भारत का समर्थन न कर सकें तो कम से कम विरोध मे भी न रहें । लेकिन इन दूरदर्शी बातों से किसी को क्या लेना देना । तुर्रा यह आरोप कि मोदी जी तो देश मे रहते ही नही । यही नही, यूरोपीय देश भारत मे निवेश करें तथा युवाओं के लिए रोजगार की संभावनाएं बढें इसके लिए एक माहौल तैयार करने का भी प्रयास किया जा रहा है । लेकिन किसी को इससे क्या मतलब ? बस दाल मंहगी नही होनी चाहिए ।
अब तो  पैर ही कुल्हाडी पर दे मारा । स्वच्छ भारत के लिए आधा फीसदी सेस लगेगा । अब कौन पसंद करेगा इस टैक्स को ? सफाई जाए भाड मे । अपने घर का कूडा दूसरे घर के सामने डाल देने से जब काम चल जाता है तो फिर कैसा सफाई टैक्स । मोदी जी को ज्यादा स्वच्छ भारत की चिंता है तो अपनी जेब ( सरकारी खजाना ) ढीली करें । मोदी जी को अभी यह समझना बाकी है कि अभी तक देश मे राजनीतिक परंपरा सिर्फ जनता को देने की रही है , उससे लेने की नही । अब जब कोई उसकी जेब मे हाथ डालेगा तो क्या उसे पसंद आयेगा ? बिल्कुल नही ।
मोदी जी यह भूल रहे हैं कि यहां एक ऐसी समाजवादी राजनीतिक शैली लंबे समय तक रही है जिसमे सारा ठेका सरकार लेती है । जनता को तो सिर्फ अपने फायदे से मतलब होता है । जो नेता भारतीय जनमानस की इस ‘ खूबी ‘ को समझते हैं वह लेपटाप और चैक बांटते हैं । जरूरत पडी तो युवाओं को परीक्षाओं मे नकल की छूट भी देते हैं ।जनता  को कर्ज बांटते हैं फिर सख्ती से उसकी  उगाही नही करते ।  राष्ट्र्हित नाम की चिडिया के चक्कर मे ऐसा कोई कदम नही उठाते जिससे जनता जनार्दन नाराज हो जाए । अब अगर अगला चुनाव नही हारना है तो मोदी जी को  ऐसा हवन करना जरूरी नही जिससे अपने ही हाथ जलने लगें ।

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