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एक बार फिर पूरी दुनिया को धरती के बिगडते पर्यावरण की चिंता सताने लगी है । अपने ही अविवेक से और अपने ही स्वार्थों के लिए प्रकृति के साथ मनुष्य ने जो खिलवाड किया उसका परिणाम आज सभी के सामने है । हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं और् स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि अब भी अगर इंसान न चेता तो धरती का विनाश निश्चित है । साल–दर–साल गर्म होती इस धरती को विनाश से बचाने के लिए दुनिया के तमाम देश एकजुट व एकमत हैं । लेकिन प्र्यास कितने ईमानदार होंगे, कह पाना मुश्किल है । इस संदर्भ मे हम जब भारतीय पर्यावरण को देखते हैं तो हिमालय व हिमालय क्षेत्र की अनदेखी नही कर सकते । दर–असल भारतीय उपमहादीप का पर्यावरण हिमालयी क्षेत्र की सेहत पर निर्भर करता है इसलिए जरूरी है कि इस पहलू पर समय रहते सोचा जाए ।
–, ––, , , यहां की समस्याओं और जरूरतों मे भी बहुत ज्यादा अंतर नही है । लेकिन यह इस क्षेत्र की त्रासदी रही है कि इस पर कभी पर्याप्त ध्यान दिया ही नही गया । एक तरफ जहां देश विकास की सीढियां चढता रहा वहीं दूसरी तरफ हिमालय क्षेत्र के राज्य विकास की बाट जोहते रहे ।
, , , , , –खूटियों को कहीं भी देखा जा सकता है ।
, अब असहाय नजर आते हैं । वन माफियों की चोरी और सीनाजोरी ने इस क्षेत्र के वनों को बर्बादी की हद तक पहुंचा दिया है । सरकार की अदूरदर्शी नीतियां आग मे घी का काम कर रही हैं । उत्तराखंड का चिपको आंदोलन इस दर्द के गर्भ से ही उपजा और जंनसामान्य मे विस्तारित हो चेतना का प्रतीक बना । लेकिन वनों के दोहन का कुचक्र अभी खत्म नही हुआ है ।
––स्खलनों की श्रंखला शुरू हो जाती है । केदार घाटी का हादसा इस निर्मम सच का गवाह है । लेकिन कानूनी व गैरकानूनी खनन बदस्तूर जारी है ।
–, –रखाव व सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाये और इसके लिए कानून बने ।
, ––पुथल भी संभव है ।
, –, , –स्खलन व बिगडते पर्यावरण की समस्या गंभीर होती जा रही है । आज इस क्षेत्र के बिगडते पर्यावरण का प्रभाव पूरे देश की जलवायू मे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । जरूरी है कि समय रहते इस पर्यावरणीय संकट को गंभीरता से महसूस किया जाए तथा उन कारणों को दूर किया जाए जो इसके लिए जिम्मेदार हैं ।
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