Menu
blogid : 18110 postid : 1146086

जरूरी है राष्ट्रप्रेम की सोच का होना

यात्रा
यात्रा
  • 178 Posts
  • 955 Comments
भारत मे राष्ट्रप्रेम को लेकर जो राजनीतिक कुश्ती चल रही है अब उसका प्रभाव पाकिस्तान मे भी दिखाई पडने लगा है । टी-20 विश्वकप मे पाकिस्तानी टीम के कप्तान शाहीद अफरीदी ने एक इँटरव्यू मे कहा कि उसे पाकिस्तान से ज्यादा प्यार भारत मे मिला है । बस इतना कहना भर था कि पाकिस्तान मे उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दायर हो गया । लेकिन दूसरी तरफ भारत मे देखिये  । आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत को अभी हाल मे कहना पडा कि अब तो देश मे बच्चोँ को भारत माँ की जय बोलना भी सिखाना पडेगा । इस कथन मात्र से औवेसी जी का पारा सांतवें आसमान पर चढ गया । वह इतने उत्तेजित हो गये कि उन्होने खुले आम घोषणा  कर दी  कि अगर कोई उनके गले मे छूरी भी रख दे तो वह भारत माता की जय नही कहेंगे । देखते हैं कि मोहन भागवत उंनका क्या बिगाड लेते हैं ।
औवेसी साहब की इस तीखी टिप्पणी पर भी भारत मे देशद्रोह के मुकदमे जैसी कोई बात नही कही गई । ऐसा पहली बार् भी नही । इसके पहले भी वह देशविरोधी आपत्तिजनक टिप्पणियां कई बार कर चुके हैं । देखा जाए तो यह देश मे रह कर देश को मुंह चिढाने जैसा है लेकिन शायद यही फर्क है पाकिस्तान और भारत की सोच मे ।
इन बातों को छोड भी दें तो इधर जे.एन.यू मे जो भी हुआ उसे देश के सम्मान पर सीधा हमला ही कहा जायेगा । परिसर के अंदर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारों के साथ कश्मीर , मणीपुर व केरल की आजादी और भारत के टुकडे करने के नारे उछाले गये । यहां तक कि सेना को बलात्कारी तक कहा गया, इसे भारत के अलावा किस देश मे बर्दाश्त किया जा सकता था । लेकिन तुर्रा यह कि असहिष्णुता व साम्प्रदायिकता का टैग भारत के गले मे बांधा गया है । क्या यह सोचने के लिए मजबूर नही करता कि कहीं तो कुछ बुनियादी दोष है ।
दर-असल आजादी के बाद हमारी राष्ट्रीय नीतियों मे राष्ट्रनिर्माण व चारित्रिक गुणों को विकसित करने की सोच का नितांत अभाव रहा है । बल्कि जाने अनजाने हमने एक आत्मकेन्द्रित समाज का ताना बाना जरूर बुन लिया जिसके तहत एकमात्र उद्देश्य अपने हित साधना रह गया है । अपने लिए, अपने परिवार के लिए पैसा कमाओ और् सुविधासम्पन्न जीवन जिओ । इस सोच मे देशभक्ति और राष्ट्रीयता की भावना सिरे से नदारत रही है ।
बात यहीं तक सीमित नही है । हमने समाज की उन्नति व विकास का जो ढांचा तैयार किया उसमें सिर्फ और सिर्फ पैसे का ही महत्व रहा है । संस्कारों और मूल्यों को हमने हाशिए पर डाल दिया । इधर तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यबस्था ने अनजाने ही कोढ पर खाज का काम किया । आज स्थिति यह है कि अगर देश की अस्मिता व सम्मान को गिरवी रख कर भी पैसा मिलता है तो कहीं अपराध भाव जाग्रत नही होता । रोज-ब-रोज देशद्रोहियों की बढती संख्या के पीछे यह एक बडा कारण है ।
रही सही कसर पूरी कर दी हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ने जिसके तहत विवादास्पद राजनीतिक विचारों को न सिर्फ बोलने का अवसर मिला अपितु उन्हें जडें जमाने के लिए भी अनुकूल हालात मिले और इसका लाभ कुछ राष्ट्रविरोधी ताकतों को भी मिला । जे.एन.यू मे जो नजारा देखने को मिला यह उसी का परिणाम है ।
अब अगर इस कुचक्र को तोडना है तो आने वाली पीढी को राष्ट्र्वाद की शिक्षा स्कूली स्तर से देनी होगी और उन्हें ऐसे उच्च संस्कारों से लैस करना होगा जिसमे सबसे ऊपर स्थान राष्ट्र का हो । इसमे कोई संदेह नही कि हाल की घटनाओं ने यह पूरी तरह से साफ कर दिया है कि हमारी युवा पीढी भटकाव का शिकार होने लगी है । विचारों के नाम पर वह राष्ट्रहित व रास्ट्रविरोध के बीच के अंतर को नही समझ पा रही है । इसलिए अगर यह कहा जा रहा है कि भारत मां की जय के उदघोष को सिखाये जाने की जरूरत है तो इसमे कुछ भी गलत नही ।

Read Comments

    Post a comment