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उत्तराखंड के हित मे नही राजनीतिक अस्थिरता

यात्रा
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मे इसे एक अलग राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ और उम्मीद की गई कि यह छोटा उपेक्षित पर्वतीय अंचल विकास की राह पर आगे बढेगा । लेकिन विकास को वह गति न मिल सकी जिसकी अपेक्षा की गई थी । इसका एक बडा कारण इस नव प्रदेश मे राजनीतिक स्थिरता का न होना भी रहा ।

उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो परंपरा से यह कांग्रेस का एक मजबूर गढ रहा है । इसका एक बडा कारण स्वतंत्रता आंदोलन मे इस क्षेत्र के लोगों की भूमिका का होना भी है । यही कारण है कि कांग्रेस के कर्मठ व प्रतिबध्द नेताओं की यहां लंबी परम्परा रही है । लंबे समय तक कांग्रेस को इस क्षेत्र से कोई विशेष राजनीतिक चुनौती का सामना भी नही करना पडा । लेकिन राममंदिर आंदोलन के बाद से राजनीतिक स्थितियां तेजी से बदलीं तथा भाजपा ने इस क्षेत्र मे एक मजबूत उपस्थिति दर्ज करने मे सफलता प्राप्त की ।

चूंकि इस राज्य के गठन मे भाजपा की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है इसलिए भी यहां के लोगों का पार्टी के प्रति रूझान होना भी स्वाभाविक ही है । वैसे भी राज्य निर्माण के बाद भाजपा को ही इस राज्य की सत्ता प्राप्त हुई तथा नित्यानंद स्वामी इस प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने । लेकिन उसके बाद कांग्रेस बनाम भाजपा की राजनीतिक लडाई के चलते इस राज्य मे मुख्यमंत्री बदलते रहने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह आज तक जारी है ।

होने के कारण बहुत ज्यादा प्रभावी भूमिका मे कभी नही रही ।

अंदाज नही किया जा सकता । यहां गौरतलब है कि मुख्यमंत्री हरीश रावत कुमांऊ मंडल से हैं तथा विजय बहुगुणा व हरकसिंह रावत गढवाल मंडल से ।

उसकी दुखद परिणति राष्ट्रपति शासन के रूप हुई ।

गोवा व उत्तरपूर्व के राज्यों मे भी ऐसा होता रहा है । ऐसा इसलिए भी संभव हो जाता है कि कम सदस्यों वाली इन राज्य विधानसभाओं आठ दस लोगों के पाला बदलने से राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल जाते हैं और सरकार आसाने से अल्पमत मे आ जाती है । यही उत्तराखंड मे हुआ है ।

लेकिन विकास की राह चलते इस प्रदेश के आर्थिक विकास के लिए यह राजनीतिक अस्थिरता कतई हितकारी नही है । अगर यहां विकास को गति देनी है तो राजनीतिक स्थायित्व का होना बेहद जरूरी है । दुखद तो यह है कि दल बदल कानून के बाबजूद ऐसा हो पा रहा है । छोटे राज्यों मे इस राजनीतिक दोष को देखते हुए जरूरी है कि कानूनों मे कुछ बदलाव किये जांये जिससे इस प्रकार की स्थितियां आसानी से उत्पन्न न हो सकें ।

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