मैदानों की उमस भरी गर्मी से बेदम हमे याद आने लगती हैं पहाड की रूमानी तस्वीर यानी खूबसूरत वादियां, हिमाच्छादित चोटियां और हरे-भरे ज़ंगल | चन्द दिनों के लिए ही सही, हम पहाड की इन खूबसूरत वादियों मे खो जाने का सपना लिए निकल पड्ते हैं | ऐसी ही हर साल सैलानियों की भीड वहां पहुंचती है और पहाड की वादियां देसी विदेशी सैलानियों के कह्कहों से गूंजने लगती हैं |
लेकिन रूमानी सपनों से अलग सच्चाई की जमीन पर खडे होकर देखें तो सपनों का यह पहाड अब बहुत बदल गया है | आसपास की वादियां अपना सौन्दर्य खो रही हैं | हरे भरे जंगल उजाड हो रहे हैं ।हाल मे लगी आग ने हालातों को और भी बदतर बना दिया है । ऐसे मे यहां के पर्यटन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं ।
आज बात चाहे उत्तराखंड की हो या फिर हिमाचल अथवा कश्मीर की वादियों की, सौंदर्य व सुकून की पर्याय बनी यहां की वादियों मे आग ने कम कहर नही बरपाया । पहाडियों के घने जंगल जहां कभी देवदार व चीड के पेडों से आती सरसराती हवाएं फिजा मे एक अलग खुशबू को बिखेरती थीं वहां गर्म हवा के थपेडों और धुंए का गुबार है । ऐसे मे भला कौन होगा जो इन वादियों मे सैर सपाटे की बात सोचने का साहस जुटा सके ।
अगर उत्तर प्रदेश से जन्मे उत्तराखंड को ही ले तो संपूर्ण गढवाल व कुंमाऊ मंडल के जंगलों को आग ने एक बुरे सपने मे बदल दिया है । पर्यटकों की पहली पसंड बने नैनीताल के आसपास की पहाडियों मे धुंए का गुबार अब भी देखा जा सकता है । पहाडियों मे बिखरे तमाम पर्यटन स्थलों मे धुंए की चादर ने एक दम घोटु माहौल पैदा कर दिया है । स्थानीय निवासी कभी वन विभाग को तो कभी सरकार को कोस रहे हैं ।
यही हाल है केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री जैसे धार्मिक स्थलों की । इस मौसम मे कभी यहां पर्यटकों की भीड देखते बनती थी । मई व जून के महीने तो मानो पर्यटन के नाम ही लिख दिये जाते थे । लेकिन आज यहां पसरा सन्नाटा है । पौडी व लैंसडाउन जिनका पर्यटन की द्र्ष्टि से अपना महत्व रहा है आज आग की तपन के नीचे खामोश पडे हैं । आसपास की पहाडियों मे लगी आग ने पूरे क्षेत्र का तापमान इतना बढा दिया है कि अब यहां सैर सपाटे की बात भी बैइमानी लगती है ।बेशक आग का ताडंव कुछ कम हुआ हो लेकिन पूरी तरह खत्म नही हुआ । दूसरी तरफ राज्य के हुक्मरानों को तो मानो इन सब बातों से कोई लेना देना ही नही है ।
हिमालय क्षेत्र सिर्फ घने जंगलों और खूबसूरत वादियों के लिए ही नही जाना जाता अपितु यहां वन्यजीवों की भी अपनी एक दुनिया है । किस्म किस्म के पक्षियों को यहां देखा जा सकता है । लेकिन इस अग्नि तांडव ने वन्यजीवों की इस दुनिया को ही संकट मे डाल दिया है । जहां चारों तरफ से आग ही आग हो वहां यह वन्य जीव भला कैसे सुरक्षित रह सकते हैं । लेकिन इस हादसे को लेकर हो रही राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप के बीच भला किसके पास समय है जो इन वादियों और जंगलों के दर्द को समझ सके ।
जलते जंगलों से उपजे काले धुंए की गहरी चादर मे लिपटे इस खूबसूरत हिमालय क्षेत्र की त्रासदी रही है कि विकास की दौड मे यह हमेशा हाशिए पर ही रहा । 2001 मे अलग राज्य बन जाने के साथ एक उम्मीद जगी थी कि अब यह प्रदेश पर्यटन के मानचित्र पर अपनी के पहचान बना सकेगा । लेकिन छिटपुट प्रयासों को छोड दें तो यहां पर्यटन विकास के गंभीर प्रयासों की कमी साफ झलकती है । लेकिन देवभूमि कहे जाने वाला यह अंचल अपने नैसर्गिक सौंदर्य व धार्मिक महत्व के कारण स्वभाविक रूप से सैर सपाटे व आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है । यही कारण है कि मई , जून के महीनों मे यहां सैलानियों की भीड अपने चरम पर दिखाई देती है । स्कूलों के ग्रीष्मावकाश के कारण भी यहां की वादियों और खूबसूरत स्थलों मे बच्चों , युवाओं की चहल पहल देखते बनती है ।
लेकिन आज जब सुलगती हुई वादियों मे यहां का जनजीवन व पर्यावरण ही संकट से गुजर रहा है तो पर्यटकों के आगमन की बात भला कैसे सोची जा सकती है ? ऐसे मे वह स्थानीय लोग जो इस मौसम मे थोडा बहुत कमा लिया करते थे, मायूस बैठे हैं । सडक किनारे के ढाबों व दुकानों मे काम करने वाले तथा स्थानीय दस्तकारी व उत्पादों के सहारे अपनी जीविका चलाने वाले बस उम्मीद मे टुकर टुकर देख भर रहे हैं । लेकिन इन वादियों के इस दर्द को यहां की सरकार कभी समझ सकेगी या नही, पता नही ।
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