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केरल की राजनैतिक हिंसा पर क्यों कोई शोर नही

यात्रा
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सोवियत संघ के विघटन के बाद लाल झंडे की फीकी पडती चमक ने बहुत पहले ही भारत के कम्युनिष्ट आंदोलन को भी हाशिए पर डाल दिया था । यही कारण है कि पश्चिम बंगाल के अपने मजबूत गढ से भी वामपंथ का तंबू उखड चुका है । अब अपनी बची खुची जमीन बचाने के प्रयास मे यह केरल मे अपने अस्तित्व की लडाई लड रहा है ।

लेकिन आश्चर्य इस बात पर है कि अपनी गुंडागर्दी और गैर कम्युनिस्ट विचारों के प्रति असहिष्णुता का भाव रखने वाले सी.पी.एम की कारगुजारियों पर बहुत कम चर्चा होती रही है । इधर केरल मे भाजपा के बढते प्रभाव के चलते जिस तरह से वहां हिंसात्मक घटनाओं की बाढ सी आई है, उस पर राजनीतिक दलों की खामोशी सोचने पर मजबूर करती है । आखिर इस देश मे हिंसा पर यह कैसा वैचारिक विभाजन है जिसके तहत एक तरफ तो छोटी छोटी बातों पर असहिष्णुता का शोर है और दूसरी तरफ जिंदा मक्खी निगलने का बेशर्म प्र्यास भी ।

वैसे तो चुनाव प्रचार के समय से ही वहां हिंसा की घटनाएं शुरू हो गई थीं । संघ कार्यकर्ताओं पर कई स्थानों पर सुनियोजित हमले हुए । इन हमलों मे कुछ संघ कार्यकर्ताओं को अपनी जान भी गंवानी पडी और कई गंभीर रूप से घायल हुए । देखा जाए तो केरल मे ऐसा पहली बार नही हो रहा । ईसाई प्रभाव तथा वामपंथ की आक्रामक राजनीति व कुछ हिंदु विरोधी विचारों के कारण वहां संघ व भाजपा कार्यकर्ताओं से टकराव होता रहा है । हिंदु विरोधी चेष्टाओं के प्रखर विरोध के कारण संघ कार्यकर्ता हमेशा से उनके निशाने पर रहे हैं । लेकिन इधर केन्द्र मे भाजपा के आने के बाद वहां संघ कार्यकर्ताओं को एक नया उत्साह मिला । लेकिन यही हिंसा का कारण भी बना । सी.पी.एम ने इसे अपने वर्चस्व पर एक खतरा समझते हुए हिंसा की एक नये अध्याय की शुरूआत की और यह सिलसिला अभी भी कायम है ।

राज्य मे चुनाव परिणामों के बाद निकाले गये विजय जलूसों के दौरान सी.पी.एम और बी.जे.पी के कर्यकर्ताओं के बीच हिंसात्मक झडपें हुई । इसमे दोनो दलों के एक एक कार्यकर्ता की मौत हुई । इसके बाद राज्य मे कई स्थानों मे हिंसा होने लगी । यहां गौरतलब है कि राज्य पुलिस मूक दर्शक बनी हुई है । इससे हालात और भी खराब होते जा रहे हैं । लेकिन सीताराम येचुरी इन घटनाओं के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठ्हरा रहे हैं । बहरहाल बढती हिंसा को देखते हुए दिल्ली मे बी.जे.पी ने सीपीएम मुख्यालय पर प्रदर्शन भी किया है । नितिन गडगरी राष्ट्रपति महोदय से मिले और उन्हें वहां के हालातों के बारे मे बताया ।

वैसे तो भाजपा नेताओं ने भी यह साफ कर दिया है कि केरल की सरकार यह न भूले कि केन्द्र मे भाजपा की सरकार है और संघ या भाजपा कार्यकर्ताओं पर इस प्रकार की हिंसा बर्दाश्त नही की जायेगी । देखना है केरल की नवनिर्वाचित सरकार इस बात को कैसे लेती है । फिलहाल आरोपप्रत्यारोप जारी हैं और इस बीच केन्द्र ने एक दल भी इस राजनैतिक हिंसा को समझने के लिए केरल भेज दिया है ।

वैसे तो केरल मे वामपंथियों विशेष कर सी.पी.एम. कार्यकर्ताओं की खुलेआम गुंडागर्दी ने उनके प्रभावहीन होते चेहरे को ही कुछ और बदरंग किया है लेकिन सवाल यह भी है कि अब कहां है कांग्रेस का विलाप और स्वयं वामपंथियों की चिंघाड । असहिष्णुता के झंडाबरदार वुध्दिजीवी कहां किस गुफा मे तपस्या मे लीन हैं ? क्या राहुल या केजरीवाल इस राजनीतिक असहिष्णुता पर भी आंसू बहायेंगे जैसा कि वे अभी तक करते आये हैं ? कश्मीर मे प्रदर्शन के दौरान किसी एक प्रदर्शनकारी की मौत पर जो उंगुलिया उठती हैं वह केरल मे संघ कार्यकर्ताओं की मौत पर क्यों नही ? यह सवाल आज नही तो कल देश को मथेगा । लेकिन सवाल आज की खामोशी पर भी है ।

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