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समर्थक नही भक्त हैं लोग

यात्रा
यात्रा
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किसी भी समाज मे एक स्थिति वह होती है जब कुछ लिखने -बोलने का जनमानस पर प्रभाव दिखाई देता है और एक स्थिति ऐसी भी बनती है जब यह प्रभाव नगण्य सा हो जाता है । इस स्थिति मे समाज अपने हितों का एक घेरा बना कर अपने को उसमे बंद कर बहरा हो जाता है । आज कुछ ऐसा ही है ।
गौर से देखें तो भारतीय मीडिया भी अब जन विचारों को परिमार्जित करने का काम नही करता बल्कि बात का बतंगड बनाने व सनसनी फैलाने की भूमिका मे दिखाई देता है । उसने भी अपने व्यवसायिक हितों के अनुसार अपने को  राजनीतिक खेमों मे बांट लिया है । अब ऐसे मे बहरे समाज मे  अलख जगाये कौन , सवाल यह भी है ।
इन हालातों का ही परिणाम है कि कभी ” तिलक , तराजू और तलवार , इनको मारो जूते चार ” का नारा देकर अपनी राजनीति शुरू करने वाली मायावती से लेकर भारतीय राजनीति मे जोकर समझे जाने वाले लालू व पिछ्डे -यादव -मुसलमानों के रहनुमा समझे जाने वाले मुलायम सिंह यादव तक , जिसमे कहीं नीतिश भी हैं और एक कोने मे  पासवान भी , सभी बडे मजे से राजनीतिक सुख भोग रहे हैं । अब जो इन जातीय झुंडों की राजनीति मे फिट नही बैठते उनके पास देशप्रेम का नारा ही रह जाता है । अब उसमे मे भी एक देशप्रेमी झुंड वो जो अपने को सेक्यूलर कह कर अपनी पीठ खुद ही थपथपा रहा है और दूसरे वे जो अपने को सच्चा  राष्ट्रभक्त मानने का शोर मचा रहे  हैं ।
हिंदी पट्टी को छोड , बंगाल व केरल मे देखें तो यहां कुछ छिटपुट प्रजातियां हैं जो आज भी मजदूर- मालिक वाले पुराने घिसे पिटे रिकार्ड को ही चला कर अपना काम चला रहे हैं ।
लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उत्तर द्क्षिण सभी मे एक चीज समान है और वह यह  कि सभी झुंड अपने अपने झंडाबरदारों के पक्के भक्त हैं । उन्हें अपने मसीहाओं की और सिर्फ अपने हितों की बात सुनाई देती है । बाकी आवाजों के लिए उनके कान बहरे  हो चुके हैं । इसीलिए आप लाख कागज काला करते रहें या फिर माइक मे गला फाडते रहें अंतत: जाना इन्होने अपने अपने मसीहाओं के पास ही है । क्यों न जाएं आखिर हैं तो यह झुंड ।  अब झुंड हैं तो चरित्र भी वैसा ही होगा । अब ऐसे मे किसी बडी  राजनीतिक क्रांति की उम्मीद करने का मतलब होगा  मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखना ।

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