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जहरीली शराब नही भ्रष्ट तंत्र बुलाता है मौत

यात्रा
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बिहार मे शराबबंदी को लेकर हो रहे राजनीतिक व सामाजिक नुकसान फायदे पर अभी बहस और तकरार खत्म भी न हुई थी कि इसी शराब ने उत्तर प्रदेश के एटा जिले के अलीगंज क्षेत्र व फर्रूखाबाद मे मौत का जो ताडंव किया, उसने सभी को सकते मे डाल दिया । अकेले एटा हादसे मे अभी तक मरने वालों की संख्या 24 हो गई है और डेढ दर्जन लोग गंभीर अवस्था मे जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रहे हैं। यह आंकडा कहां तक जायेगा, कह पाना मुश्किल है । अभी यहां सिसकियां खत्म भी न हुई थी कि पडोसी जिले फर्रूखाबाद मे भी यही हादसा हो गया । यहां जहरीली शराब पीने से 6 लोगों की मौत हो गई और कई लोग अस्पतालों मे जिंदगी के लिए जूझ रहे हैं । यह घटनाएं कोई नई नही हैं । प्रत्येक राज्य मे इस तरह के हादसे अब आम हो चले हैं ।

इन हादसों मे मरने वाले चूंकि गरीब तबके के ही लोग होते हैं इसलिए यह खबरें किसी राजनीतिक भूचाल का कारण भी नही बनतीं । अलबत्ता मीडियाई शोर शराबे से कुछ समय के लिए माहौल जरूर गर्म हो जाता है । परिणामस्वरूप कुछ सरकारी अफसरों को निलंबित कर दिया जाता है और दो चार को हवालात मे । लेकिन चंद दिनों बाद इन मौतों को भुला दिया जाता है । जहरीली शराब से मौत का यह ताडंव , प्रशासनिक उठापटक, मीडियाई शोर व घडियाली राजनीतिक आंसू मानो हर साल की कहानी हो ।

यह दर्दनाक हादसे आखिर क्यों न हों ? दिन भर की हाड तोड मेहनत के बाद आराम चाहिए और आराम के लिए कोई नशा । इस कमजोरी का लाभ उठा शराब कारोबारी इन्हें नशे के नाम पर ऐसे जहर को परोसने मे भी कतई नही हिचकिचाते जो इनकी जिंदगी को ही लील जाता है । शराब को ज्यादा तेज बनाने के लिए इनके दवारा जिस मिथाइल केमिकल और यूरिया का इस्तेमाल किया जाता है वह अंतत: जानलेवा साबित हो जाता है । मिथाइल की अधिकता से आंखों की रोशनी चली जाती है । लेकिन इससे भला किसी को क्या लेना देना । यह तो मुनाफे का चोखा धंधा है जिसमे स्थानीय नेता से लेकर पुलिस और आबकारी विभाग सभी शामिल हैं । अब ऐसे मे इसे रोके कौन ?

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लेकिन लाख टके का सवाल आज भी अपनी जगह पर है कि क्या अब हम फ़िर उत्तर प्र्देश के एटा और फर्रूखाबाद मे मौत का वैसा ही ताडंव नही देख रहे ।

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