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बोया पेड बबूल का …..

यात्रा
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राजनीति की इस शर्मनाक फ़ुहडता के बीच आज याद आ रहा है दिल्ली के एक प्रतिष्ठित दैनिक का वह संपादकीय जो उस समय लिखा गया था कि जब इंदिरा जी की हत्या हुई थी | जब पूरे देश मे सहानुभूति की लहर चल रही हो तब इंदिरा जी की गलत और घटिया राजनीति को उनकी मौत के लिए जिम्मेदार बताना वाकई मे एक साहस का काम था |

संपादकीय मे लिखा गया था कि किस तरह  इंदिरा जी ने पंजाब मे मजबूत अकाली राजनीति को तोडने के लिए जो गंदी राजनीति का खेल खेला उस राजनीति ने  ही उन्हें लील लिया | राजनीति के जानकार यह बखूबी समझते हैं कि पंजाब मे ऐसा किया गया और उस राजनीति के गर्भ से ही भिंडरावाला का जन्म हुआ था | फ़िर इस भस्मासुर को मारने के लिए आपरेशन ब्लू स्टार करना पडा और अंतत: आपरेशन ब्लू स्टार ही इंदिरा जी की हत्या का कारण भी बना |

ऐसी ही गंदी राजनीति की एक शुरूआत कभी मायावती जी ने भी की थी  जब उन्होने दलित राजनीति मे अपनी पैठ  बनाने के लिए नारा दिया था “ तिलक, तराजू और तलवार,इनको मारो जूते चार “ | इस विषैले ब्र्ह्मास्त्र का घातक प्रभाव पडा और सदियों से दबे कुचले दलित समुदाय ने एक महिला को ताकतवर समझे जाने वाले सवर्ण समुदाय को इस तरह गरियाते देख उसे अपना नेता मान लिया | वही  मायावती जी देखते देखते दलित समुदाय की एक ताकतवर नेता के रूप मे उभर गईं और कांग्रेस को अपने दलित वोट बैंक से हाथ धोना पडा | दूसरे दलों का तो कोई पुरसाहाल नही |

सवर्ण जातीय समूहों को सरेआम गरियाते हुए उन्होने जिस राजनीतिक संस्कृति को अपने हितों के लिए अपनाया आज वही जातीय राजनीति की फ़सल विभत्स रूप मे लहलहा रही है | अभी जिस बात से वे आहत हुई हैं वह गंदे शब्द उसी राजनीतिक संस्कृति का बाय प्रोडक्ट है जिसे उन्होने विकसित किया था | यह दीगर बात है कि अब उन्हें बुरा लग रहा है |

किसने किसको गाली दी और किसकी गाली ज्यादा बुरी थी, सवाल इस बात का नही है | यहां समझना यह जरूरी है कि गालियों को राजनीतिक हथियार बना कर हित साधने की यह शैली आई कहां से ? किसने इसकी पहल की ? क्या मायावती जी यह समझ सकेंगी कि उनकी राजनीतिक शैली ही अब उन्हें भी डसने लगी है ठीक उसी तरह से जैसे इंदिरा जी को उनकी राजनीतिक शैली ने डसा था | फ़र्क इतना भर है कि उन्हें पंजाब मे अकालियों के वर्चस्व को तोडना था और यहां मायावती जी को दलित समुदाय को कांगेस व दूसरे दलों से तोड कर अपने मे गोलबंद करना था |

यह नही भूलना चाहिए कि भस्मासुर देर सबेर उसे भी लील जाता है जिसने उसे पैदा किया | वैसे अच्छा तो यह होगा कि सभी राजनीतिक दल महसूस करें कि गंदे और घटिया राजनैतिक हथकंडे अंतत: ऐसे ही माहौल का सृजन करते हैं जैसा आजक्ल दिखाई दे रहा है | देश और समाज हित मे इस बात को जितना जल्दी महसूस कर लिया जाए उतना अच्छा है |

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