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क्रिकेट के हित मे नही बोर्ड की हठधर्मिता

यात्रा
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लोढा समिति की सिफारिशों को लेकर एक बार फिर क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड टकराव की राह पर है । बीसीसीआई ने जो रवैया अपनाना है इससे एक बात तो साफ हो ही गई है कि देश मे किसी भी क्षेत्र मे सुधार लाना अब इतना आसान नही रहा । क्रिकेट दूसरे खेलों की तरह महज एक खेल ही है लेकिन जिस तरह से इसमे पैसे और रूतबे का बोलबाला है उसने इसे भ्र्ष्टाचार और उठा पटक का एक ऐसा खेल बना दिया है जिससे कोई अलग नही होना चाहता । अब जब सभी इसमे रह कर अपने हित साधने के प्रयासों मे लगे हैं तो उन्हें इस खेल से अलग रखने का कोई भी प्र्यास उन्हें भला क्यों अच्छा लगने लगा । समस्या की मूल जड यही है

वैसे भारतीय क्रिकेट जिसे दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड भी कहा जाता है, विवादों के घेरे मे रहा है । खिलाडियों के चयन से लेकर , आई.पी.एल के सर्कस तथा राज्य संघों के साथ पैसे की बंदरबाट तक सभी कुछ मे सवाल उठते रहे हैं लेकिन इसमे काबिज खिलाडियों के खेल के आगे सभी नतमस्तक होते रहे । परिणामस्वरूप क्रिकेट बोर्ड की अमीरी और भ्र्ष्टाचार की कहानियां साथ साथ चलती रहीं ।

ऐसी उम्मीद की गई थी ।

इधर कुछ वर्षों से बीसीसीआई व राज्य क्रिकेट संघों पर कई कारणों से उंगुलियां उठने लगी थीं । मंत्रियोंनेताओं व खेल मठाधीशों के तमाम तिकडमों के चलते खेल ही खतरे मे पडने लगा था । इसका एक बडा कारण क्रिकेट बोर्ड मे कई लोगों का लंबे समय से काबिज रहना भी था और यह अपने पद व रसूख का इस्तेमाल करने मे इतने चतुर खिलाडी बन चुके थे कि कोई भी आसानी से इनके विरूधद जाने का साहस नही जुटा पा रहा था । कई ऐसे नाम हैं जिन्होने लंबे समय से भारतीय क्रिकेट को अपने गिरफ्त मे ले रखा है । अब इस फैसले से क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के इन मठाधीशों के अस्तित्व पर ही तलवार लटक गई है । यह सभी इस फैसले से हतप्रभ हैं । बेशक शुरूआती दौर मे दिखावे के तौर पर सभी ने इन सिफारिशों पर अपनी सहमति जताई लेकिन अब इसके विरूध्द एक्जुटता दिखाई दे रही है ।

इस समिति की क्रिकेट के हित मे जो बडी सिफारिशें हैं उनमे एक है कि बीसीसीआई का पदाधिकारी बनने के लिए अधिकतम आयु सीमावर्ष की होगी । इसके साथ ही कोई मंत्री या सरकारी अफसर बोर्ड का पदाधिकारी नही बन सकता । कोई भी अधिकतम तीन कार्यकाल और कुल नौ वर्षों तक ही पदाधिकारी रह सकता है । किसी भी पदाधिकारी को लगातार दो से ज्यादा कार्यकाल नही मिलने चाहिए । यही नहीएक कार्यकाल पूरा होने के बाद कुल समय के लिए कूलिंग पीरिएड का भी प्रावधान है । यही नहीआईएलव बीसीसीआई के लिये अलग अलग गवर्निंग काउंसिल की भी सिफारिश की गई है । इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण सिफारिश यह भी है कि एक राज्य का एक वोट होगा ।

बहरहाललोढा समिति की सिफारिशों ने कई पुराने दिग्गजों व मठाधीशों की नींद उडा दी है । अब कोई मंत्री या अफसर पदाधिकारी नही बन सकेगा । ऐसे मे कई दिग्गजों का जाना तय है । दो पद पर न रहने की सिफारिश की गाज भी कई महारथियों पर गिरेगी और उन्हें अपने रसूख मे कमी करने को मजबूर होना पडेगा । जो लोग लंबे समय से क्रिकेट संघों व बोर्ड मे काबिज रहे हैं उनकी विदाई लगभग तय है ।

कुछ महत्वपूर्ण फैसलों को समिति ने सरकार के पाले मे डाहै । इसमे एक महत्वपूर्ण फैसला बीसीसीआई को आरटीआई के दायरे मे लाने और दूसरा सट्टेबाजी को कानूनी रूप देने का है ।

इधर उच्चतम न्यायालय ने बीसीसीआई पर समिति की सिफारिशों को लागू करने का दवाब बनाया है लेकिन बोर्ड इन्हें लागू करने की बजाए इन्हें बाय पास करने के रास्ते तलाश रहा है । न्यायालय के आदेश के विरूध्द जाकर वार्षिक् आम बैठकें आयोजित कर ऐसे फैसले लिए जो इन सिफारिशों के विरूध है । वहीं दूसरी तरफ लोढा समिति ने न्यायालय को जो रिपोर्ट सौपी है उसमे सिफारिशों का उल्लघंन करने के लिए बोर्ड के सभी शीर्ष अधिकारियों को हटाने के लिए कहा गया है । बोर्ड को यह सिफारिशें इतनी नागवार गुजरी हैं कि बतौर धमकी वह आने वाली क्रिकेट सीरीज को रद्द करने की बात भी कहने लगा है । यही नही बोर्ड दवारा राज्य संघों को बडी धनराशि भुगतान करने के संबध मे भी कुछ फैसले लिये गये जिन्हें लोढा समिति ने सिफारिशों व न्यायालय के आदेशों के विरूध्द माना है । न्यायालय के अनुसार जब तक राज्य क्रिकेट संघ सिफारिशें मानने को तैयार न हों उन्हें धन आबंटित न किया जाए लेकिन अब बोर्ड का कहना है कि ऐसे हालातों मे देश मे आगे न तो कोई क्रिकेट सीरीज हो सकेगी और न ही घरेलू मैच क्यों कि बोर्ड उन्हें सिफारिशें मानने के लिए बाध्य नही कर सकता ।

बोर्ड पर काबिज मठाधीश अपनी मर्जी लादने मे सफल होते हैं या फिर उच्चतम न्यायालय इन्हें सही रास्ते मे लाने मे सफल होता है । लेकिन इतना जरूर है कि महज कुछ लोग अपने स्वार्थों के लिए क्रिकेट को साफ सुथरा करना नही चाहते और अपनी मनमर्जी के लिए क्रिकेट के भविष्य को दांव पर लगाने मे भी पीछे नही दिख रहे ।

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